तेरा सुरूर - TERA SUROOR
मैं तुझको पढ़ने की खातिर ,अपनी रात गवां बैठा
क्या कहूं तुझे ? क्या लिखूं तुझे? मैं मन की बात गवां बैठा ।।
मैं तुझको पढ़ने की खातिर ,अपनी रात गवां बैठा
न मुखड़ा तेरा चाँद सा हैं, न बलखाती तू नागिन सी ।
न जुल्फ घनेरी सांझ सी है, न आंखे झील किनारी सी ।।
फिर ऐसी तुझमे बात है क्या, मैं अपने होश गवां बैठा ।
मैं तुझको पढ़ने की खातिर ,अपनी रात गवां बैठा ।
तेरा मुखड़ा फागुन के भोर सा है, तेरी चाल मचलती मछली सी ।
तेरी जुल्फ पूष के ओस सी है, तेरी आंखे है ध्रुव तारे सी ।।
है होंठ तेरे मधुशाला से ,मैं अपनी प्यास गवां बैठा ।
मैं तुझको पढ़ने की खातिर ,अपनी रात गवां बैठा ।।
उम्मीदे क्या पालूं तुझसे ,तू एक पराई दौलत है ।
मैं ठहर गया एक पल जो यहां, प्रियतम तेरी ही बदौलत है ।।
बस एक आस है एक प्यास, एक बार लगा ले अंग मुझे ।
फिर जा घर अपने प्रियतम के, "बाबुल" न करेगा तंग तुझे ।।
सांसे तेरी,तन भी तेरा, मैं अपने प्राण गवां बैठा ।
मैं तुझको पढ़ने की खातिर अपनी रात गवां बैठा ।।
क्या कहूं तुझे ? क्या लिखूं तुझे? मैं मन की बात गवां बैठा ।।
मैं तुझको पढ़ने के खातिर , अपनी रात गवां बैठा ।।
Very nice
ReplyDeleteItne kaam me bhi kaise time nikalte h Bhai kya likhte h aap waah bahut sunder
ReplyDeleteVery nice
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