Not only in the Corona era, private school teachers always in trouble all the time
कोरोना काल मे ही नही हर समय रहता है प्राइवेट स्कूल शिक्षकों का दुर्दिन
🙏 जय हिंद, किसी भी देश की दशा और दिशा सुधारने के लिए शिक्षकों का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है , इनकी उंगली पकड़ कर ही विकास का रथ खींचने वाला महारथी पलता और बढ़ता है -- किन्तु इन *शिक्षकों की दशा की जो अनदेखी वर्तमान दौर में हो रही है उन सब का जिम्मेदार कौन है ????*
पूरा विश्व *कोरोना महामारी* के संकट से गुजर रहा है , इस भयावह स्थिति में जब सरकारें ,संस्थाएं , उच्च आय वर्ग के लोग निर्धन ,गरीब , श्रमिक वर्ग, और दैनिक कार्य कर जीवन यापन करने वाले लोंगों की मदद को आगे आये *इसी परिस्थिति में प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने वाला अध्यापक भी आशा भरी निगाहों से देख रहा था*
हाल ही में *लैपिड्री ट्रस्ट* संस्था की तरफ से कराए गए एक सर्वेक्षण *गुरु दक्षिणा* के परिणामों से यह बात स्पष्ट हो गई की *प्राइवेट स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों की दशा न सिर्फ कोरोना काल मे बल्कि पूरे समय लगभग एक जैसी ही रहती है*
जून 2020 में 15 दिन तक चले एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में सैकड़ों लोंगों ने प्रतिभाग किया जिसके परिणाम स्वरूप यह तथ्य सामने आया कि *50 % शिक्षकों को उनका वेतन थोड़ा थोड़ा करके ही मिलता है* सिर्फ इतना ही नहीं हर माह मिलने वाले इस वेतन की कोई निश्चित तारिख भी नही होती और इस समस्या से *27% शिक्षक जूझ रहे हैं*
*36% शिक्षकों को वेतन पाने के लिए प्रिंसिपल या मैनेजर को हर महीने टोकना पड़ता है*
सर्वेक्षण में भाग लेने वाले *90% शिक्षकों के कंधे पर उनके आश्रितों का भार भी है* जिनमे 45% ऐसे शिक्षक है जो 2 से अधिक और 4 सदस्यों का भरण पोषण करते हैं, 27% शिक्षकों के भरोसे 5 से 8 सदस्यों का दायित्व है ,जबकि 18% कर्मचारियों को 9 से अधिक पारिवारिक सदस्यों के जीविकोपार्जन की व्यवस्था करनी पड़ती है।
*गुरु दक्षिणा* सर्वेक्षण में *68% शिक्षकों और 27% प्रधानाचार्यों ने हिस्सा लिया* इनमें *90% उत्तरदाता वित्तविहीन विद्यालय के है* आपको बता दें कि वित्तविहीन विद्यालय वे विद्यालय है जिन्हें सरकार की तरफ से कोई आर्थिक सहायता नही मिलती , विद्यालय चलाने वाली संस्था प्रधान को ही हर प्रकार की व्यवस्था करनी होती है इसलिए प्राइवेट स्कूलों की फीस आसमान छूती जा रही है , इतना ही नही स्कूल संचालकों ने व्यावसायिक दृष्टि से संस्था तो खोल ली किंतु अध्यापको के वेतन के लिए किसी प्रकार के कोष की व्यवस्था करना उचित नहीं समझा *93% प्राइवेट स्कूल अपने शिक्षकों को वेतन देने के लिए फीस जमा होने का इंतजार करते हैं* और यही सबसे बड़ा कारण है कि कोरोना काल मे इन विद्यालयों के अध्यापको को वेतन से वंचित रहना पड़ा क्योंकि अभिभावकों को फीस जमा करने से छूट दे दी गई, साथ ही एन परीक्षा के समय आयी महामारी से स्कूलों में अरबों रुपए की फीस जमा नहीं हो सकी ,इसी का हवाला देकर मैनेजर वेतन देने से पीछे हट गए।
इन सारी अव्यवस्थाओं के लिए *45 % लोग सरकार को जिम्मेदार मानते हैं जबकि 22% मैनेजमेंट को दोषी ठहराते हैं* 18% साथियों का मानना है कि वे स्वयं इन परिस्थितियों के जिम्मेदार है क्योकि वे जब खुद ही इस दलदल में नही आते तो कुछ होता ही नहीं।
वित्तविहीन के दलदल में *48 % शिक्षक 35 वर्ष से कम आयु के है* तथा सर्वे में प्रतिभागिता के आधार पर कुल *67% पुरुष है और 23% महिलाएं*
इस दयनीय स्थिति में अपने पारिवारिक जीवन को चलाने के लिए इन शिक्षकों को कितना पारिश्रमिक मिलता है जानना नही चाहेंगे 🤔🤔 *27% शिक्षकों को उनके महीने भर के कार्य के बदले 1000 ₹ से 3000 ₹ ही मिलता है* *वही 18% शिक्षकों को 3000₹ से 5000₹ में ही संतुष्टि करनी पड़ती है* *इतना ही नहीं थोड़ी सुखद बात यह है कि 36% शिक्षक साथियो को प्रतिमाह 5000₹ से 9999₹ मिलते हैं*
इन सब को एक नज़र से देखें तो इस गगनचुंबी मंहगाई में *81% शिक्षकों को ₹10000 से भी कम वेतन मिलता है*
अपना पेट भरने के लिए इन्हें इस कमाई के अतिरिक्त अन्य स्त्रोत पर भी निर्भर रहना पड़ता है *31% शिक्षक खेती करते हैं, 18% ट्यूशन पढ़ाते हैं, 9%पशुपालन करते है* ।
प्राइवेट वित्तविहीन विद्यालयों में पढ़ाने वाले *40% शिक्षक स्वध्ययन के लिए जरूरतों की पूर्ति हेतु कार्यरत हैं*।
कोरोना महामारी के कारण वैश्विक परिदृश्य में जो आर्थिक हाहाकार मचा है उसमें सबसे अधिक यदि कोई प्रभावित हुआ है तो वह *वित्तविहीन शिक्षक ही है* सरकारों और संगठनों ने सभी को कुछ न कुछ किसी न किसी माध्यम से दे दिया *किन्तु -- अपने सम्मान, सामाजिक लज्जा को बचाये हुए बिना कुछ मांगे लॉक डाउन के लॉक में छुपा शिक्षक सबसे दयनीय दशा में जी रहा है*
👉👉 कोरोना संकट में *50% शिक्षकों को मार्च 2020 से आज तक का वेतन नही मिला , जबकि इसी क्रम में 18% शिक्षकों को जनवरी से , 13% शिक्षकों को फरवरी से और 9% को अप्रैल से वेतन नहीं मिल पाया है* ।
वेतन के अभाव में इन्होंने अपने परिवार को चलाने के लिए *29% ने अपने खर्चों में कटौती की है, 13% शिक्षकों ने लोन लिया है* सबसे भयावह परिणाम तो यह देखने को मिला कि *10% शिक्षक साथी नरेगा में काम करने तक को मजबूर हो गए*
इतना सब कुछ होने के बाद भी *40% शिक्षक अपनी संस्था से संतुष्ट हैं*
*36% शिक्षक वेतन के किचकिच से अपनी संस्था से नाखुश है जबकि 18% ने नाराजगी का कारण न बताना ही मुनासिब समझा*
✍️✍️ आशा है यह विश्लेषण सर्वहित में कुछ न कुछ अवश्य कल्याणकारी सिद्ध होगा , सब का कल्याण हो इसी भावना से सभी को *भारत माता की जय , वंदे मातरम*
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