आशा के दीप
आओ सब मिल दीप जलाएं ।
समय हो चला तिमिर भगाएं ।।
चलो चलें घर की चौखट पर ।
एक दूजे को आस बंधाए ।।
अनदेखा अनजाना सा डर ।
जाने कौन दिशा से आया ।।
मानव के प्रति मानव में है ।
स्पर्श,घृणा,भय का साया ।।
सब में नव उत्साह जगाएं ।
आओ सब मिल दीप जलाएं ।।
कुछ तो दंड विधाता का है ।
कुछ संस्कृति का है तिरस्कार ।।
छोड़ा शाक, गृह, प्रक्षालन ।
नित योग,ध्यान और नमस्कार ।।
सब आर्य धर्म को अपनाएं ।
आओ सब मिल दीप जलाएं ।।
विश्वास करो निज *बाबुल* पर ।
कर्तव्य हो, आज्ञा पालन हो ।।
जो सक्षम है धन धान्य भरा ।
मानव से मानव - लालन हो ।।
निज में मातृत्व का भाव जगाएं ।
आओ सब मिल दीप जलाएं ।।
फिर लौटेगा वह समय *ज्ञान* ।
सब अधरों के पट खोलेंगे ।।
घननाद,कबड्डी ,किलकारी ।
सब-मिल अजान हम बोलेंगे ।।
जन जन का मन सब बहलायें ।
आओ सब मिल दीप जलाएं ।।
आओ सब मिल दीप जलाएं ।
समय हो चला तिमिर भगाएं ।।
चलो चलें घर की चौखट पर ।
एक दूजे को आस बंधाए ।।
*---ज्ञान प्रकाश मिश्र'बाबुल'*
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